मेरे घर के पिछवाड़े से निकलती पगडंडी पर काफी लोग आया-जाया करते हैं हर सुबह... हर दिन... हर शाम लेकिन मैंने कभी नहीं देखा उस पगडंडी के अंत में कहीं उम्मीद की मोमबत्ती तो नहीं जल रही!
हिंदी समय में सुमित पी.वी. की रचनाएँ
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