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कविता

पगडंडी

सुमित पी.वी.


मेरे घर के पिछवाड़े से निकलती
पगडंडी पर काफी लोग
आया-जाया करते हैं
हर सुबह... हर दिन... हर शाम
लेकिन मैंने कभी नहीं देखा
उस पगडंडी के अंत में
कहीं उम्मीद की मोमबत्ती
तो नहीं जल रही!


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